ISBN 978-80-905324-2-7
प्रकाशक Nakladatelství Zdeněk Vavřínek, किताब १२ सितंबर २०१३ को प्रकाशित थी। प्रकाशक का ई-मेल पता किताब की पुष्पिका में दिया जाता है, नीचे देखिए।
किताब उदाहरण के लिए Academia दुकान (Václavské náměstí, प्राग) में बिकती है।
अरुणाकाश का रास्ता हिंदी तथा चेक काव्य का पहला संग्रह है जो दो समसामयिक रचनाकारों से लिखा गया, हिंदुस्तानी कवयित्री अरुणा राय से और चेक कवि ज़्देन्येक वाग्नेर से। ज़्देन्येक वाग्नेर एकमात्र कवि हैं जो अपना काव्य हिंदी और चेक में लिखते हैं। उन्होंने अरुणा राय की कविताओं का हिंदी से चेक में अनुवाद किया। किताब में ४२ कविताएँ मिलती हैं, हर रचनाकार की २१ कविताएँ, सब कविताएँ दोनों भाषाओं में। प्रस्तावना चेक मशहूर कवि मारतिन पेतिश्का से लिखा गया, उसका हिंदी में अनुवाद ज़्देन्येक वाग्नेर से गया। प्राग और आगरा की तस्वीरों का इस्तेमाल करके ज़्देन्येक वाग्नेर आवरण पृष्ठ भी बनाया।
सूर्योदय का रास्ता (मारतिन पेतिश्का की प्रस्तावना से)
अरुणाकाश का रास्ता नामक किताब में जो अनोखा सस्वर हमें मिलता है वह मुझे चेक साहित्य में न मिला।
सुंदर आवरण पृष्ठ एक आद्यस्वरूप है जो किताब के विषय के बारे में बता रहा है, जैसे कि कविता हो बता रहा है: जबकि इस किताब में प्राग शहर में स्थित कवि ज़्देन्येक वाग्नेर की और हिंदुस्तानी कवयित्री अरुणा राय की कविताएँ मिलती हैं, पहले ही किताब खुलती है आवरण पृष्ठ जैसे कि उनका काव्य सुसंहत रूप में जोड़े॰॰॰
सांस लेते हैं उस में हिंदुस्तानी दूरी और प्राग की नज़दीकी से घुला काव्य पर प्राग की दूरी का और हिंदुस्तानी नज़दीकी का काव्य भी॰॰॰
पीछे पृष्ठ पर हिंदुस्तानी खिड़की से होकर बरोक प्राग शहर आगे निकल जा रहा है॰॰॰
किताब चेक राष्ट्र की ओर हिंदुस्तानी खिड़की खोल रही है, चेक काव्य की ओर खिड़की। लेकिन जैसे चेक राष्ट्र की ओर हिंदुस्तानी खिड़की खोल रही है वैसे ही किताब हिंदुस्तानी काव्य के विश्व की ओर उलटा चेक दर्शन खोल रही है॰॰॰
और आवरण पृष्ठ पर चेक ऊँचाई में उपस्थित ताजमहल अपनी चमक से प्राग शहर को चुंबन दे रहा है जैसे कि सारे महाद्वीप आर-पार गाना चाहे: जो अँधेरी में नहीं रहना चाहता उसे रोशनी बढ़ानी है॰॰॰
…
एशियाई गीतिकाव्य की परंपरा यूरोपीय गीति परंपरा से जुड़ती है, एक दूसरी में ऐसी ही तरह से घुलती-मिलती है जैसी तरह से साझे की किताब के आवरण पृष्ठ पर दो विश्व घुलते-मिलते हैं॰॰॰
दो वाद्य-यंत्र यहाँ साझे के काव्य में जुड़ गए, साझे के गीत की छनक बढ़ाते हैं, एक दूसरे को पूरा करता है॰॰॰
कोमलता और भंगुरता, वर्तमानकालिक क्षण के तरंगों की अनुभूति, गीति भाव पुराने चीन के काव्य के अनुवादों में, ओमर ख़य्याम के भाषांतरों में, जापानी हाइकु में चेक पाठक को संबोधित कर रही थी॰॰॰ अब हम हिंदुस्तानी गीतिकाव्य की अज्ञात भूदृश्यावली में चल रहे हैं जो पुराने श्रेण्य रचनाकारों की रचना नहीं है बल्कि वह आधुनिक रचनाकारों की रचना है।
यह तलाश का काव्य है, दो घरों के लिए साझे के घर की तलाश का॰॰॰
हिंदुस्तानी और चेक घर किताब में एक में जुड़े हैं, साझे का घर बनाते हैं। इस ज़माने में जब लोग, देश और धर्म एक दूसरे से अलग करते हैं और एक दूसरे से टक्कर खाते हैं तब दो कवितापूर्ण व्यक्ति अपने दो घरों के लिए साझे का घर ढूँढ पाए॰॰॰
…
इस ज़माने में जब बुलबुलों का मुलायम गीत गड़बड़ शोर से ध्वनिरोक बनाया जाता है तब हमें काव्य की चमक न छोटी करनी है, उसकी अप्रकट चमक जो हमेशा चारों ओर है॰॰॰ वह हमारे पास तभी है जब खिड़कियाँ दूरियों में खुल रही हैं॰॰॰ काव्य के प्रभाव द्वारा दूरी नज़दीकी में बदल रही है इस किताब की आसाधारण के श्रेय से। अब यह सुदर्शन किताब चेक तथा हिंदुस्तानी घरों की ओर चल रही है॰॰॰ ताकि वहाँ और वहाँ भी बताए कि काव्य का घर अपृथक्करणीय है, एकमात्र है॰॰॰
और जहाँ इस किताब के रचनाकारों का, कवि ज़्देन्येक का और कवयित्री अरुणा का मुलायम और सम्मोहित काव्य दिखाई देता वहाँ चमकता है हर जगह पर॰॰॰
जो अँधेरी में नहीं रहना चाहता उसे रोशनी बढ़ानी है॰॰॰
यह किताब रोशनी दे सकती है।
और दे रही है॰॰॰
विषय सूची और पुष्पिका पीडीएफ़ के रूप में
इस किताब के अक्षर-संयोजन की सॉफ़्टवेयर (सॉफ़्टवेयर का वर्णन सिर्फ़ चेक और अंग्रेज़ी में उपलब्ध है, हिंदी में नही)
अरुणा राय की एक कविता
जो मिरा इक महबूब है
जो मिरा इक महबूब है मत पूछिए वो क्या खूब है।
आँखें उसकी काली हँसी, दो डग चले बस डूब है।
पकड उसकी सख्त है। पर छूना उसका दूब है।
हैं पाँव उसके चँचल बहुत, रूकें तो पाहन बाख़ूब हैं।
जो मिरा इक महबूब है मत पूछिए वो क्या खूब है…
Můj milý
Neptejte se, jak dobrý je můj milý.
Oči jeho černé usmály se, v nich kroky mé se utopily.
Jeho ruce pevné jsou. Však něžně vždy mě uchopily.
Nohy jeho neklidné jen balvany by zastavily.
Neptejte se, jak dobrý je můj milý…
ज़्देन्येक वाग्नेर की एक कविता
Marmeláda
Nebe má barvu
jako marmeláda,
kterou máš, lásko,
tolik ráda.
A já tu marmeládu snad
ze rtů tvých toužím ochutnat.
मुरब्बा
आकाश का रंग
मुरब्बे जैसा है
जो तुझे, मेरे प्यार,
इतना पसंद है।
और तेरे होंठों से मुरब्बा
मैं शायद खाना चाहूँगा।
रचनाकारों की तस्वीरें | ||
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अरुणा राय / Aruna Rai | ॥ | Zdeněk Wagner / ज़्देन्येक वाग्नेर |